Devi Dasa Shloka Stuti देवीदशश्लोकीस्तुती

देवीदशश्लोकीस्तुती – जगतगुरुआदिशंकराचार्य

Also known as Ambastakam

चेटी भवन्निखिल केटी कदम्ब वनवाटीषु नाकपटली

कोटीर चारुतर कोटीमणी किरण कोटीकरञ्जित पदा

पाटीर गन्धि कुच शाठी  कवित्व परिपाटीमगाधिपसुताम्

घोटीकुलादधिक धाटी मुदारमुख वीटीर सेनतनुताम् ॥ १॥

द्वैपायन प्रभृति शापायुध त्रिदव सोपान धूळि चरणा

पापाप ह्रस्व मनु जापानुलीन जन तापाप नोद निपुणा

नीपालया सुरभि धूपालका दुरित कूपादुदन्चयतुमाम्

रूपाधिका शिखरि भूपाल वंशमणि दीपायिता भगवती ॥ २॥

याळी भिरात्त तनुराळी लसत्प्रिय कपाळीषु खेलति भवा

चूलीनकुल्य सित चूळी भराचरण धूळी लसन्मुणिगणा

याळी भृतिस्रवसिताळी दळम् वहति याळीकशोभि तिलका

साळी करोतु मम काळी मनः स्वपदनालीकसेवन विधौ ॥ ३॥

बालामृतांशु निभ फालामना गरुण चेलानितम्बफलके

कोलाहलक्षपित कालामराकुशल कीलाल शोषण रविः

स्थुलाकुचे जलद नीलाकचे कलित लीलाकदम्ब विपिने

सूलायुध प्रणुति शैला विधात्रृ हृदि शैलाधिराज तनया ॥ ४॥

कम्बावती वस विडम्बागणेन नव तुम्बाङ्ग वीण सविधा

बिम्बाधराविनत शम्भायुधादि निकुरुम्बा कदम्बविपिने

अम्बाकुरङ्ग मद जम्बाळरोचि रहलम्बाळका दिशतु मे

शम्भाहुळेय शशिबिम्बाभिराममुखि सम्भाधितस्तनभरा ॥ ५॥

न्यङ्काकरेवपुषि कङ्काळरक्तपुषि कङ्कादि पक्षि विषये

त्वङ्कामनामयसि किङ्कारणं हृदय पङ्कारिमेहि गिरिजाम्

शन्काशिलानिशित तङ्कायमान पद सङ्कासमान सुमनो

झङ्कारि भृङ्गतति मङ्कानुपेत शशि सङ्कासवक्त्र कमलाम् ॥ ६॥

दासायमान सुम हासा कदम्बवन वासाकुसुम्बसुमनो

वासाविपञ्चि कृत रासाविधूय मधुमासारविन्द मधुरा

कासारसूनतति भाषाभिराम तनुरासार शीत करुणा

नासमणि प्रवर वासा शिवातिमिर मासादयेतु परतिम् ॥ ७॥

झम्भारि कुम्भि पृथु कुम्भापहासि कुच सम्भाव्य हार लतिका

रम्भाकरीन्द्र कर डिम्भापहोरु गति दिम्बानुरन्जित पदा

शम्भावुदार परिकुम्भाङ्कुरत्पुळक डम्भानुरागपिसुना

कम्भासुराभरण गुम्भासदादिशतु शम्भासुरप्रहरणा ॥ ८॥

दाक्षायनी दनुज शिक्षा विधौ वितत दीक्षा मनोहरगुणा

भिक्षाळिनोनटन वीक्षा विनोदमुखि दक्षाध्वरप्रहरणा

वीक्षाम् विदेहि मयि दक्षा स्वकीय जन पक्षाविपक्ष विमुखी

यक्षेश सेवित निराक्षेप शक्ति जयलक्ष्म्यावदानकलना ॥ ९॥

वन्दारु लोकवर सन्धायनी विमल कुन्दावदातरदना

बृन्दारबृन्दमणि बृन्दारविन्द मकरन्दाभिषिक्त चरणा

मन्दानिलाकलित मन्दारदामभिर मन्दारदाम मकुटा

मन्दाकिनी जवनबिन्दानवाजमरविन्दासना दिशतु मे ॥ १०॥

यत्र आशयो लगति तत्र अगज वसतु कुत्र अपि निस्तुल शुका

सुत्राम काल मुख स त्रासक प्रकार सुत्राण कारि चरणा ।

चत्र अनिल अति रय पत्र अभिराम गुण मित्र अमरी सम वधूः

कु त्रास हीन मणि चित्र आकृति स्फुरित पुत्रादि दान निपुणा ॥ ११॥

कूला अति गामि भय तूला वलि ज्वलन कीला निज स्तुति विधा

कोला हल क्षपित काला अमरी कुशल कीलाल पोषण नभा ।

स्थूला कुचे जलद नीला कचे कलित लीला कदम्ब विपिने

शूला आयुध प्रणति शीला विभातु हृदि शैला अधिराज तनया ॥ १२॥

इन्धान कीर मणि बन्धा भवे हृदय बन्धौ अतीव रसिका

सन्धावती भुवन सन्धारणे अपि अमृत सिन्धौ उदार निलया ।

गन्ध अनुभाव मुहुः अन्ध अलि पीत कच बन्धा समर्पयतु मे

शम् दाम भानुम् अपि रुन्धानम् आशु पद सन्धानम् अपि अनुगता ॥ १३॥